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कखन हरब दुख मोर (Kakhan Harab Dukh Mor)( Maithili/Hindi Film) Review

Kakhan Harab Dukh Mor (Maithili/Hindi) is a Maithili movie. Presented by Ugna Entertainment . It is a film based on the life of Ugna ...


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Kakhan Harab Dukh Mor (Maithili/Hindi) is a Maithili movie. Presented by Ugna Entertainment. It is a film based on the life of Ugna and Mahakavi Vidyapati. The events that happened in the life of Mahakavi Vidyapati have been presented in it.


कखन हरब दुख मोर (Kakhan Harab Dukh Mor)( Maithili/Hindi) एक मैथिली फिल्म है। उगना एंटरटेनमेंट की प्रस्तुति है। यह उगना और महाकवि विद्यापति के जीवन पर आधारित फिल्म है। महाकवि विद्यापति के जीवन में घटित घटनाओं को इसमें प्रस्तुत किया गया है। 

इसके कलाकार हैं: फूल सिंह (विद्यापति), दीपक सिन्हा (उगना), ममता राजे (सुधीरा), अवधेश मिश्रा (भगवान शिव), अनुभव गुप्ता (हरपति), ज्योति चौधरी (दुलरी), प्रदीप शर्मा (रामा), अभिराज झा (शास्त्री), अखिलेश कुमार (पिंटू) (राजा शिव सिंह) व अन्य। निर्देशक: संतोष बादल | निर्माता: संजय राय | गीत: विद्यापति | गीत-संकलन: विनय बिहारी | संगीत: ज्ञानेश्वर दुबे व सुरेश आनंद | म्यूजिक कंपनी: टी-सीरीज


कहानी

फिल्म की शुरुआत में नैरेटर विद्यापति के गांव बिस्फी के बारे में बताता है। इसी क्रम में आगे बढ़ते हुए विद्यापति शिव की पूजा करते हुए गीत गा रहे हैं यह दृश्य आता है। गाने के अंत में दरभंगा के महाराजा का संदेश वाहक आता है जो विद्यापति को एक प्रशस्ति पत्र देता है। इस पत्र में उनके द्वारा रचित रचनाओं की प्रशंसा की गई है। यह बात विद्यापति (फूल सिंह) अपने नौकर रामा(प्रदीप शर्मा) को बताते हैं। दोनों में यह बात चल ही रही है कि गांव का सबसे धनी व्यक्ति उनके पास आता है। वह कहता है कि मुझे बेटी का कन्यादान करना है। इसलिए विद्यापतिजी आपको मैं आमंत्रण देने आया हूं। साथ ही वह कुछ कपड़े और फल भी उन्हें भेंट करता है। विद्यापति यह कहते हैं कि इसकी क्या आवश्यकता है तो वह धनिक कहता है कि आप गरीब हैं और आपकी गरीबी को देखकर ही मैं यह सामान आपको दे रहा हूं। यह बात सुनकर विद्यापति को काफी दुख होता है। इसके बाद धन्ना सेठ अपने नौकरों से कहता है कि मुझे किसी दूसरे रास्ते से ले चलना शास्त्री के घर के पास से नहीं। क्योंकि शास्त्री और विद्यापति दोनों एक दूसरे के प्रतिस्पर्धी हैं। शास्त्री (अभिराज झा) विद्यापति से जलता है। इस बात को शास्त्री का एक साथी सुन लेता है और वह शास्त्री को सभी बता बताता है। इस बात से शास्त्री भी नाराज होता है। अगले दृश्य में शादी की रस्में चलती हैं और साथ ही गीत भी। लड़की विदाई के बाद विद्यापति अपनी बेटी के साथ घर लौटते हैं तो उनकी बेटी यह कहती है कि सभी लड़की इसी तरह एक दिन पिता का घर छोड़ कर चली जाती है क्या? विद्यापति के हां कहने पर वह कहती है कि मैं कभी आपको छोड़कर नहीं जाऊंगी। फिर रामा विद्यापति को खोजते हुए घर आता है और मालकिन से उनका पता पूछता है। जब वह विद्यापति से मिलता है तो विद्यापति अपने सपने की बात करते हैं कि मैंने एक योगी को देखा जो शिव जी की तरह थे। तो रामा कहता है कि आप तो साक्षात भगवान शिव को देख लिया है। फिर विद्यापति उसे अपनी नई रचना सुनाने को बोलते हैं। तो रामा कहता है कि आज होली का दिन है थोड़ा भांग खा लीजिए और फिर मैं आपकी रचना सुनुंगा। विद्यापति अपनी रचना को गीत के माध्यम से गाते हैं जिस पर सारे गांव के लोग झूमते हुए होली खेलते हैं। इसी के दरम्यान शास्त्री अपने आदमियों के साथ मोटका (गांव का पहलवान) को रंग चेहरे पर मल देता है और सब मिलकर उसे कुएं में गिरा देते हैं। फिर वे लोग वहां से चले जाते हैं। मोटका की इस दशा पर गांव में पंचायत बैठती है और उसके लिए विद्यापति को दोषी ठहराया जाता है। साथ ही यह भी कहा जाता है कि अगर मोटका की मृत्यु हो जाती है तो उसके पूरे परिवार का भरण पोषण भी विद्यापति को ही करनी होगी। यही पंचों का फैसला है। विद्यापति चिंतित हो जाते हैं। घर आकर शिवजी की प्रतिमा के सामने अपने दुखों को प्रकट करते हैं। 
फिर दूसरे दिन गांव में कुश्ती की प्रतियोगिता चल रही होती है जिसमें महाराज शिव सिंह (अखिलेश कुमार (पिंटू)) भी उपस्थित होते हैं। दूसरे गांव का पहलवान सभी पहलवानों को परास्त कर देता है और चुनौती देता है कि कोई और है जो मुझे हरा दे। तभी मोटका आता है और उससे कुश्ती करके हरा देता है। इस पर महाराजा विद्यापति को पुरस्कार देने को कहते हैं। इससे गांव में हर्ष का वातावरण छा जाता है। रात में खाना खाते समय उनके आंखों में आंसू को देखकर उनकी पत्नी सुधीरा (ममता राजे) कहती हैं कि आपके आंखों में आंसू कैसी? तो वे कहते हैं कि भगवान शिव की महिमा भी कैसी है। कभी दुख देते हैं तो कभी उसे एक ही पल में हटा भी देते हैं। रात में इसी धुन में वह एक गीत की रचना करते हैं जिसे भगवान शिव सुनकर नृत्य में मग्न हो जाते हैं। इस नृत्य के अंत में पार्वती जी उनसे पूछती हैं कि इस किसे गीत पर इतने मग्न हो नृत्य कर रहे हैं तो वे कहते हैं कि बिस्फी वासी विद्यापति मेरे परम भक्त हैं और उनकी रचनाओं पर मैं मग्न हो गया हूं। मैं उनकी रचनाएं सुनने उनके पास कल ही सुबह चला जाउंगा। और वे मृत्युलोक की ओर चल देते हैं। इधर बिस्फी पहुंचने पर विद्यापति के घर शिव पहुंचते हैं। विद्यापति उनसे पूछते हैं कि तुम कौन हो और क्या चाहते हो। तो वह बताता है कि मेरा नाम उगना(दीपक सिन्हा) है और मैं आपके यहां नौकरी करना चाहता हूं। आप केवल अपनी रचनाएं मुझे सुनाया कीजिएगा। मैं आपका सब काम कर दूंगा। उगना को विद्यापति काम पर रख लेते हैं। उगना विद्यापति के रचे गीत पर एक दिन कुछ ज्यादा ही मग्न होकर नृत्य करता है। इसकी चर्चा पूरे गांव में होता है। शास्त्री उगना को लोभ देता है कि वह उसे ज्यादा खाना और रहने को अच्छा घर देगा। उगना उसके पास आ जाए। लेकिन उगना उसके इस प्रलोभन को इंकार कर देता है। जब वह विद्यापति के घर पहुंचता है तो दुलारी की मां उसे कहती है कि आज घर में खाना नहीं बना है इसलिए तुम्हें सिर्फ दूध पीकर ही रहना होगा। वहीं विद्यापति जी का लड़का हरपति (अनुभव गुप्ता) फल व मिठाई खाने के लिए रो रहा होता है। इसे देखकर उगना का दिल बहुत दुखी होता है। सबके सो जाने पर वह हरपति को बुलाता है और उसे जादू का नाम लेकर फल और मिठाई खाने को देता है। सुबह जब हरपति सबको बताता है कि उगना ने उसे फल व मिठाई खाने को दिया तो सभी इसे स्वप्न की बात समझकर हंसी में टाल देते हैं। विद्यापति सभी को सुबह गंगा स्नान चलने के लिए कहकर तैयारी करने को कहते हैं। इधर कैलाश पर पार्वती महादेव के चले जाने से चिंतित हैं। नारद जी उन्हें इस बात का ध्यान दिलाते हुए कहते हैं कि माता आप इसका हल निकाल सकती हैं। तो पार्वतीजी कहती हैं कैसे। इस पर क्रोध और अभिमान को सुधीरा के शरीर में प्रवेश करने को कहा जाता है। दोनों सुधीरा के शरीर में आ जाते हैं जिससे सुधीरा की तबीयत खराब हो जाती है। सुबह विद्यापति जब उसकी यह हालत देखते हैं तो गंगा स्नान में उसे चलने को मना करते हुए उगना को घर पर ही रहकर देखभाल करने को कहते हैं। फिर वे और रामा गंगा स्नान को चले जाते हैं। इधर सुधीरा क्रोध में आकर उगना को भला बुरा कहती है और उसे घर से चले जाने को कहती है। उसी समय विद्यापति आकर सुधीरा को समझाते हैं लेकिन उगना वहां से चला जाता है। विद्यापति उसे भी मनाते हैं लेकिन वह जाने को तैयार है लेकिन विद्यापति के बच्चों की रोने की आवाज सुनकर वह रुक जाता है। कुछ दिनों बाद राजा शिव सिंह के दरबार से विद्यापति को मिलने का बुलावा आता है तो वह उगना के साथ जाते हैं। इसी दरम्यान पार्वती जी प्यासा देवी और नारद के साथ उनके साथ आते हैं। एक घने जंगल के समय में विद्यापति और उगना विश्राम करते हैं वहीं पार्वती प्यास देवी को विद्यापति में समाने के कहती हैं। जब प्यासा देवी विद्यापति में समाती हैं तो उन्हें जोर की प्यास लगती है।
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🔆 नाथ एक व्रत (Lyrics Here) 🔆 बड़ सुख सार पाओल (Lyrics Here) 🔆 हे भोलेनाथ कखन हरब (Lyrics Here) 🔆 हे हर हमर करहुं प्रतिपाला (Lyrics Here) 🔆 जय जय भैरवी (Lyrics Here) 🔆 कखन हरब दुख मोर (Lyrics Here) 🔆 कोयल कमल कंठ झर झर (Lyrics Here) 🔆 शिव हो उतारब पार(Lyrics Here)

उगना पानी के लिए इधर उधर भटकने लगता है लेकिन कहीं भी पानी नहीं मिल पाती है। तब अंत समय में महादेव रूपी उगना अपने असली रूप में आकर गंगाजल कमंडल में भर लेता है। वह विद्यापति को पिलाता है। विद्यापति इस गंगाजल को पहचान लेते हैं और उससे पूछते हैं कि इस सघन वन में गंगाजल कहां आया। उगना बहाना बनता है लेकिन विद्यापति के ना मानने पर अपना असली रूप दिखा देता है। यह वचन भी लेता है कि अगर आपने मेरे इस रूप को सबके सामने बोल दिया उसी दिन मैं आपको छोड़कर चला जाऊंगा। फिर उगना और विद्यापति घर आ जाते हैं। महाराजा शिव सिंह उन्हें इतना धन देते हैं कि विद्यापति की गरीबी खत्म हो जाती है। इधर सुधीरा को अब और ज्यादा गुस्सा उगना पर हो जाता है। एक दिन वह विद्यापति द्वारा उसके पैर दबाते हुए देखने पर और भी अधिक गुस्सा आता है। दूसरे दिन काम कहने पर वह काफी देर से सामान लाता है जिससे वह जलते हुए लड़की लेकर उगना को मारने दौड़ती है। विद्यापति को उसके बच्चे यह बात कहने जाते हैं तो वह दौड़ते हुए आकर सुधीरा को कहते हैं कि यह तो साक्षात महादेव हैं। इस बात को देखकर उगना वहां से अंतध्यान हो जाता है। सुधीरा के शरीर में अभिमान और गुस्सा भी चले जाते हैं। अब वह पछताती है लेकिन विद्यापति उगना के वियोग में पागलों की भांति उसे ढूंढते फिरते हैं। इधर में उगना के चले जाने के बाद सभी कोई रो रहे हैं कोई खाना भी नहीं खा रहा। गांव वाले आकर समझाते हैं लेकिन सभी उगना के चलने जाने के बाद कुछ भी सुनने को तैयार नहीं। उधर महादेव को पार्वती बोलती हैं कि इस बार मैं आपको कहती हूं कि आप फिर से विद्यापति के पास कर उनको दर्शन दीजिए। विद्यापति को एक जोगी आकर बोलता है कि महादेव उसे वहीं मिलेंगे जहां उनके दर्शन हुए थे। बबूल के जंगल में। विद्यापति उसे वहां पागलों की भांति ढूंढते हैं और फिर अपना प्राण त्यागने की बात करते हैं। तभी उगना महादेव के रूप में विद्यापति को दर्शन देते हैं। जिससे विद्यापति को परम गति मिलती है। 

गीत-संगीत

इस फिल्म का सबसे ज्यादा आकर्षित गीत और संगीत करता है। विद्यापति द्वारा रचित गीतों को सुंदर और माधुर्य से परिपूर्ण संगीत मन को लुभाता है। सुरेश आनंद और ज्ञानेश्वर दुबे ने इस फिल्म में बहुत ही अच्छा संगीत दिया है। वैसे गीत को बहुत ही प्रचलित हैं और कई गायकों द्वारा गया जा चुका है लेकिन इसे इस फिल्म में एक अलग संगीत के द्वारा और भी अच्छा बनाया गया है। एक बार सुनने के बाद मन बार बार इसे सुनने को करता है। 

No. Song Name Singer Duration
1 आजू नाथ एक व्रत (Lyrics Here) ज्ञानेश्वर दुबे 6:59
2 बड़ सुख सार पाओल (Lyrics Here) ज्ञानेश्वर दुबे 6:15
3 हे भोलेनाथ कखन हरब (Lyrics Here) दीपा नारायण झा 2:59
4 हे हर हमर करहुं प्रतिपाला (Lyrics Here) उदित नारायण 4:18
5 जय जय भैरवी (Lyrics Here) ज्ञानेश्वर दुबे 7:05
6 जोगिया एक हम देखल सुरेश आनंद 6:34
7 कखन हरब दुख मोर (Lyrics Here) रविंदर जैन 7:49
8 कोयल कमल कंठ झर झर (Lyrics Here) ममता राजे 6:57
9 शिव हो उतारब पार(Lyrics Here) ज्ञानेश्वर दुबे 6:02
10 उगना रे मोरा कतए गेला ज्ञानेश्वर दुबे 6:18


अभिनय

फिल्म में अभिनेताओं का अभिनय बहुत अच्छा है। विद्यापति और उगना की भूमिका में क्रमश: फूलसिंह और दीपक सिन्हा ने उम्दा अभिनय किया है। इसके साथ ही सहायक कलाकारों में सुधीरा, रामा, शास्त्री और हरपति व दुलारी भी बढ़िया अभिनय किया है। 

अन्य क्रू मेंबर: कैमरामैन (Cameraman): आर आर प्रिन्स | नृत्य (Dance): सुनील मोटवानी, महुआ | कहानी-पटकथा (Story Script): संतोष बादल, अभिराज झा | संवाद (Dialogue): अरविन्द प्रसाद, अभिराज झा | कला निर्देशन (Art Direction) : आर के पेंटर बाबू | ध्वनि (Sound): स्व. ललन सिंह | पार्श्व संगीत (Background Music): जयंत आर्यन | गीत (Lyrics): विद्यापति, अभिराज झा, अमिताभ रंजन | गायक (Singers): रविन्द्र जैन, उदित नारायण, ज्ञानेश्वर दुबे, सुरेश आनंद, तृप्ति शक्या, ममता राजे, भवानी शंकर | विशेष आभार (Special Thanks): अश्वनी सोनी | प्रोडक्शन (Production): रंजन अस्थाना, रौशन बिहारी, अहमद कन्नौजिया | बैनर (Banner): उगना इंटरटेनमेंट, ज्वाइंट एडवेंचर ऑफ राय कार्पोरेशन | निर्माता (Producer): संजय राय | सह-निर्माता (Co-Producer): विवेकानंद झा | निर्देशक (Director): संतोष बादल



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